उत्तर प्रदेश में 18वीं विधानसभा के चुनाव वर्ष 2022 में प्रस्तावित है। 2017 में निर्वाचित वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 14 मई 2022 को समाप्त होगा।यह फरवरी से मार्च में आयोजित किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश की राजनीति जातिवाद से पीड़ित है। यहाँ हर पार्टी अपनी जाति को पकड़ कर चलती है। इन्हे विकास से कोई लेना देना नहीं है। इन्हे योग्यता और अयोग्यता में कोई अंतर नजर नहीं आता है।ये अयोग्य को सरकारी नौकरी देते है और योग्य विद्यार्थी प्रयागराज की सड़को की धूल फाँकता नजर आता है। कोई पार्टी शिक्षा और स्वास्थ्य पर बात ही नहीं करती है। सड़क ऐसे होते है , कि यात्रा के दौरान शरीर न चाहते हुए भी नृत्य करता है।
चुनाव जब आता है तब हर पार्टी के नेता बड़े जोर-शोर से जनसंवाद करते है। उनके भाषणों से लगता है, कि अब देश के हालात बदल जायेंगे। और भारत से गरीबी पूरी तरह मिट जायेगी।लेकिन चुनाव खत्म होते ही सब शांत हो जाते है। बाद में जनता को टूटी सड़क, बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार , गरीबों को इन्साफ के लिए दर-दर की ठोकरे ही मिलती है।
अब हम बात करते हैं, उ0प्र0 में होने वाले आगामी विधान-सभा चुनाव की।
उ0प्र0 में होने वाले विधान-सभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने जोर अजमाइस करना शुरू कर दिया है।
सत्ताधारी भाजपा के पास राष्ट्रवाद, राम-मंदिर, धारा -370 का मुद्दा है। तो विपक्ष के पास कमरतोड़ महंगाई, किसान- आन्दोलन, सरकारी संस्थाओं का निजीकरण प्रमुख मुद्दा है।
कांग्रेस पार्टी के पास प्रियंका गांधी का चेहरा एवं तमाम लोक- लुभावन वादे हैं। प्रियंका गांधी की सक्रियता से सपा एवं भाजपा की चिन्तायें बढ़ी हैं।
ओवैसी की सक्रियता ने जहां सपा की ब्याकुलता बढ़ा रहे हैं, तो ओम प्रकाश राजभर बीजेपी की ब्याकुलता बढ़ा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2022 का विधान-सभा चुनाव दिलचस्प होने वाला है।
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