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गोडसे की “देशभक्ति” पर कोई संसय नही एवं राष्ट्र की संतान को राष्ट्र पिता कहना अतार्किक व भारी बौद्धिक विसंगति है

संपादकीय

।।प्रणाम।।
हम सभी भारतमाता की संतान हैं,
इस प्राचीन राष्ट्र का जहाँ सभ्यता की प्रथम किरण उतरी का कोई पिता नहीं हो सकता तथा जिस धरती पर ब्रह्मा,विष्णु और महेश की भी परीक्षा ली गयी हो वहां कोई तर्क,टिप्पड़ी और मूल्यांकन की परिधि से बाहर भी नहीं हो सकता।
आदर और श्रद्धा में एक हल्की ही सही विभाजक रेखा होती ही है,गांधी जी के तथाकथित अपमान पर हो हल्ला करने वाले कांग्रेसी जिन्होंने सम्भवतः सर्वाधिक गांधी जी की आत्मा दुखाई है एक परिवार के विरुदावली गायन के लिये गांधी जी के सभी उपदेशों को दरकिनार किया है गांधी के नाम पर केवल राजनीति की दुकान चलाई है को गांधी जी के सम्मान की व्यर्थ चिन्ता का पाखण्ड करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। श्री नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की जो सर्वथा निन्दनीय कृत्य था लेकिन यह भी सत्य है कि गोडसे की गांधी जी से कोई व्यक्तिगत शत्रुता नहीं थी,गोडसे मानसिक रूप से विक्षिप्त भी नहीं थे,वे धीर,गम्भीर,शिक्षित और विचारवान युवक थे उन्होंने अदालत में लम्बा बयान दिया है जो आज तक जनता के बीच में नहीं आया, लोकतन्त्र और सभ्य समाज में हत्या और हत्यारे को महिमामण्डित नहीं किया जा सकता लेकिन देशवासियों को गोडसे के पक्ष और उनके उस समय के मनोभाव को जानने और उसके आधार पर अपनी धारणा बनाने का पूरा हक है,आखिर वह क्या कारण थे कि एक पढ़ा लिखा युवक बिना किसी शत्रुता के केवल वैचारिक दृष्टि से एक तथाकथित महामानव की हत्या कर देने के कुकृत्य के लिये बाध्य हो गया। गोडसे की देशभक्ति असंदिग्ध थी उनके देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने की औकात किसी को नहीं है, वह भी उन कम्युनिस्टों को जो अंग्रेजो की दलाली करते थे,चीन से युद्ध में जिन्होंने खुला देशद्रोह किया तथा कांग्रेसियो को भी जिनके वैचारिक पुरखे भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु की फांसी पर मौन रहे,जिनके विश्वासघात से लाखों हिन्दू विभाजन में मारे गये, जिनके नाक के नीचे सिखों का सामूहिक नरसंहार हुआ और जिनकी नजरों में स्वातंत्र्यवीर सावरकर भी साम्प्रदायिक हैं और न ही मीडिया के उन स्वयम्भू न्यायाधीशों को जिनके विचार उनके मालिकों के इशारों पर बदलते रहते हैं न ही जमीन से कटे अपनी जड़ से अनजान तथाकथित बुद्धिजीवियों को ही। अपने देश में तर्क और जिज्ञासा से ऊपर ईश्वर को भी नहीं रखा गया है। हत्या निन्दनीय है लेकिन किसी को देश से भी ऊपर प्रतिष्ठा दे देना उससे भी अधिक निन्दनीय है। सब कुछ सामने लाइये देशद्रोही और देशभक्त का नीर क्षीर करने का विवेक आज के पीढ़ी को है।

।।अम्बरीष।।

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Author: rashtradarpan