ये सवाल सबके जेहन में है कि आखिर तीन रेलगाड़ियां एक-दूसरे से कैसे टकरा गईं? क्या इस भीषण हादसे को रोका जा सकता था? इसके पीछे किसी की लापरवाही है या नहीं। अब तस्वीर कुछ साफ हो रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ओडिशा के बालासोर के पास हुए ट्रेन हादसे का कारण पता चल गया है। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में आई गड़बड़ी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।
चलिए इस हादसे के विषय में विस्तार से बताते हैं। -जब कोरोमंडल एक्सप्रेस बहानागा स्टेशन क्रॉस करने वाली थी तब ड्राइवर को मेन लाइन का सिग्नल मिला था लेकिन गाड़ी अचानक लूप लाइन में चली गई। अगर ट्रेन को लूप लाइन से जाना होता है तो येलो सिग्नल के साथ वाइट सिग्नल जलता है लेकिन सिग्नल ग्रीन था। लूप लाइन जाने की स्पीड 30 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है। इसलिए सिग्नल मिलते ही ड्राइवर स्पीड घटा लेता है। हालांकि, शुक्रवार को ऐसा नहीं हुआ।
बालासोर दुर्घटना में कोरोमंडल एक्सप्रेस के ड्राइवर को ग्रीन सिग्नल मिला और वो 130 किलोमीटर की प्रति घंटे की रफ्तार से ही आगे बढ़ गया। लूप लाइन का चक्कर छोटे-बड़े स्टेशन के पास ही पड़ता है। लूप लाइन पर मालगाड़ी खड़ी थी और इतनी भीषण टक्कर हुई कि कोरोमंडल एक्सप्रेस का इंजन मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गया। ये तस्वीर हमने आपने देखी है। टकराने के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस की बोगियां दूसरी मेन लाइन पर गिर गई जो डाउन लाइन है। उस पर बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस आ रही थी और ये पटरी पर गिरी बोगी को चीरते हुए निकल गई। अब सवाल उठता है कि इंटरलॉकिंग तो अब मैनुअली नहीं होती है। इसके लिए तो विभाग ही जिम्मेदार है।
यह हादसा कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के एक मालगाड़ी को पीछे से टक्कर मारने की वजह से हुआ। रेलवे की तकनीकी भाषा में इसे हेड ऑन कॉलिज़न कहते हैं। ऐसे हादसे आमतौर पर बहुत कम देखने को मिलते हैं। इस दुर्घटना में कोरोमंडल एक्सप्रेस के 12 डिब्बे पटरी से उतर गये। इनमें से कुछ डिब्बे दूसरी पटरी पर चले गए। दूसरी पटरी पर ठीक उसी वक़्त बेंगलुरु से आ रही यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस गुज़र रही थी। पटरी से उतरने के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के जो डिब्बे दूसरी पटरी पर गए थे वो वहां से गुज़र रही यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस से जा टकराई। इसके साथ ही यह भीषण हादसा हुआ।
भारतीय रेल में होने वाले हादसे इशारा करते हैं कि रेलवे इतिहास से सबक़ नहीं लेता है। इसलिए रेलवे में हादसों का इतिहास बार-बार ख़ुद को दोहराता है।
रेलवे में हर हादसे के बाद मंत्रालय की तरफ़ से कमिश्नर या चीफ़ कमिश्नर ऑफ़ रेलवे सेफ़्टी की जांच का आदेश होता है।रेलवे में जान या माल या दोनों के नुक़सान का जो मामला सीआरएस की जांच के लायक पाया जाता है, उसकी जांच कराई जाती है। इसका मक़सद रेल हादसों से सबक़ लेना और कार्रवाई करना होता है ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को टाला जा सके। 19 अगस्त 2017 उत्तर प्रदेश राज्य के खतौली में एक बड़ा रेल हादसा हुआ था। यहां पुरी से हरिद्वार जा उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन के 14 डब्बे पटरी से उतर गए थे। इस हादसे में क़रीब 23 लोगों की मौत हुई थी और कई मुसाफिर घायल हुए थे। इस हादसे के फ़ौरन बाद रेलवे के कुछ बड़े अधिकारियों को जबरन छुट्टी पर भी भेजा गया था. पटरी की मरम्मत कर रहे रेलवे के ट्रैकमैन, लोहार और जूनियर इंजीनियर समेत 14 लोगों को फ़ौरन नौकरी से निकाल दिया गया। बाद में कमिश्नर रेलवे सेफ़्टी की जांच में पाया गया कि हादसे के लिए केवल रेलवे का जूनियर इंजीनियर ज़िम्मेवार है, इसलिए बाक़ी लोगों को नौकरी में बहाल कर दिया गया। इसी हादसे के बाद तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके अलावा रेलवे के बड़े अधिकारी कुछ दिन बाद ही काम पर वापस आ गए थे।
अगर इस बार भी पिछले हादसों जैसा ही होगा, तो रेलवे हादसे आमतौर पर होते रहेंगे। रेलवे विभाग इस बार कठोर से कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।
ईं0 मंजुल तिवारी
सम्पादक राष्ट्र दर्पण न्यूज
सम्पर्क सूत्र- 7007829370
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