एक छोटी सी नौकरी का, तलबदार हूं मैं।
तुझसे कुछ और जो मांगू , तो गुनहगार हूं मैं।।
यह तस्वीर देश के युवाओं के बेरोजगारी और बेबसी की है जब सरकार परिवहन की व्यवस्था नहीं कर सकती तो इतनी दूर सेंटर भेजने की क्या जरूरत जब UPPCS का एग्जाम गृह जनपद या पास के जनपद में हो सकता है तो PET क्यों नहीं ?
रेलवे स्टेशन और ट्रेन, बस के भीतर का नजारा देखिए आपको स्थिति का अंदाजा हो जाएगा। यह वह युवा अभ्यर्थी है जो PET के चक्कर में गोल गोल घूम रहा है और जिंदगी बेइंतजाम भीड़ के बीच से गुजर रही। इलाहाबाद वालो का सेंटर कानपुर और कानपुर के है तो आगरा सेंटर है। क्या लॉजिक है इस परीक्षा का? क्या दृष्टिकोण समझ से परे है? वैसे सब साफ-साफ दिखता है कि यह कुछ नहीं रोजगार के नाम पर उलझाए रखने का एक बेहतरजीब तरीका निकाला गया है। मजे की बात यह है इस परीक्षा की वैलिडिटी हमारे मोबाइल रिचार्ज की तरह है जो 1 साल है और यह सिर्फ ग्रुप सी के आवेदन के लिए है। यानी किसी अभ्यर्थी को अगर 5 साल नौकरी नहीं मिलेगी तो उसे कम से कम 5 वर्ष परीक्षा से गुजरना पड़ेगा वाह कमाल का सिस्टम खोजा गया है?
शिक्षा, परीक्षा, रोजगार ,परिवहन के संबंध में सरकार की विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण ‘जनता को इतना निचोड़ दो की जिंदा रहने को ही विकास समझे।