प्रयागराज में किसी घर के बाहर एक रिक्शा रुकता है ।
उसमें से उतरकर एक भाई अपनी बहिन को आवाज लगाता है , जरा 12 रुपैया ले के तो आओ ।
बहिन बाहर आकर पूछती है, कि 12 रुपये काहे चाहिए। तो भाई उत्तर देता है, दुई रुपैया इस रिक्शे वाले को और 10 तुमको ।
आखिर राखी बंधाई भी तो तुम्हें देना पड़ेगी ।
बहिन की आंखें भाई के उस निश्छल प्रेम को देख छलछला आईं और चुपचाप बटुए से निकालकर 12 रुपये उन्हें दे दिए ।
वे भाई – बहिन थे हिन्दी साहित्य के एक युग के महानायक और उनकी आत्मा, क्रमशः पं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘ और उनकी मुंहबोली बहिन महादेवी वर्मा ।
आज रक्षाबंधन का वह प्रसंग बरबस स्मृति पटल पर तैर गया ।
वाकई बहुत रईस थे, ऐसे लोग, जिन्होंने जीवन भर सरस्वती की साधना करते हुए जो अर्जित किया उसे हम सबको देकर चले गए ।
*_ जमाने के साथ-साथ रक्षा बंधन मनाने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है। अब रिश्ते की प्रगाढ़ता पर कम और दिखावे पर ज्यादा जोर है।
रक्षा बंधन पर सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा ने एक-दूसरे को राखी बांधकर साहित्य जगत में स्त्री-पुरुष बराबरी की नई प्रथा शुरू की थी।
Er. Manjul Tiwari सम्पादक राष्ट्र दर्पण न्यूज
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