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“सूत्रों के हवाले से जानकारी वाले न्यूज चैनल अतीक के मूत्र को Live दिखा रहे थे”- पत्रकिरिता का गिरता स्तर-

किसी भी इमारत या ढांचे को खड़ा करने के लिए चार स्तंभों की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार लोकतंत्र रूपी इमारत में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ माना जाता है। जिनमें चौथे स्तम्भ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया है|
अतीक अहमद एक दुर्दांत अपराधी है। उसके ऊपर सैकड़ों मुकदमें दर्ज हैं। ऐसे अपराधी को मीड़िया को कोई तवज्जो नही देना चाहिए परन्त सूत्रों से मिली जानकारी से अपना न्यूज चैनल चलाने वाला मीडिया चैनल बड़ी बेहूदगी से अतीक अहमद का मूत्र Live दिखा रहे थे।अतीक अहमद की अहमदाबाद से प्रयागराज तक की सड़क यात्रा को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने गांधी की दांडी यात्रा बना दिया। 24 घंटे की यात्रा को कवर करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने विशेष ‘प्रबंध’ किये। सवाल उठता है कि यह विशेष प्रबंध क्यों? क्या वह कोई जननेता है? क्या वह लोक कल्याण यात्रा पर है? क्या उसने मानवता की सेवा में कोई ऐसा कार्य कर दिया है जिसका उदाहरण संसार में दूसरा नहीं मिलेगा?एक क्रिमिनल और माफिया को एक जेल से दूसरी जेल ले जाने को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा इतना महत्व आखिर क्यों दिया गया?आमतौर पर ऐसे सवालों का जवाब मीडिया में कभी किसी के पास नहीं हुआ करता।
याद करिए एक छुटभैया गुण्डे विकास दूबे की महाकाल यात्रा को। उस समय उसे उज्जैन से कानपुर लाया जा रहा था और बीच रास्ते में एनकाउण्टर कर दिया गया। हालांकि एनकाउण्टर से पहले मीडिया को एक खास जगह पर रोक दिया गया था लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस एनकाउण्टर यात्रा के कवरेज को अपनी महान उपलब्धि माना था। Electronic Media को लगा हो कि विकास दुबे की तरह अतीक अहमद का भी एनकाउंटर कर दिया जायेगा।ऐसे में अगर वह लगातार अतीक अहमद के कारवां का पीछा करता है तो उसको लाइव रिपोर्टिंग की बहुत बड़ी उपलब्धि मान ली जायेगी। लेकिन क्या इलेक्ट्रानिक मीडिया से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि आकलन और संभावना पर मंहगे एयरटाइम के 24 घण्टे बर्बाद करना कहां की पत्रकारिता है? अगर उन्हें ऐसा लगता भी है तो वो चुपचाप पीछा कर सकते हैं, मिनट दर मिनट ऐसी महत्वहीन घटनाओं को ऑन कैमरा Live रिपोर्टिंग दिखाने का उद्देश्य क्या था।अब जब आपको मिनट दर मिनट कोई न कोई नया अपडेट देना है ताकि आप अपने आपको सबसे तेज चैनल साबित कर सकें तब कैसी कैसी मूर्खताएं करनी पड़ती हैं वह मीडिया की अतीक यात्रा में भी दिख रहा है। कितनी गाड़ियां साथ चल रही हैं, गाड़ी का काफिला कहां कहां से गुजर रहा है, कहां कहां रुक रहा है, कौन कौन साथ में है, कहां कहां रुककर नाश्ता और खाना खाया जा रहा है और कहां रुककर लोग फ्रेश हो रहे हैं, इन सबकी अद्यतन जानकारी जनता को मुहैया करायी गयी। हद तो तब हो गयी जब एक सबसे तेज चैनल ने अतीक अहमद को पेशाब करते हुए लाइव दिखा दिया।
अगर एक मिनट को रुककर सोचें कि एक अपराधी और हत्यारे की एक जेल से दूसरी जेल के बीच यात्रा से सामान्य लोगों का क्या लेना देना? परंतु मंहगे एयरटाइम पर जब ऐसी सस्ती दो कौड़ी की चीजें दिखाई जाती हैं तो एक अपराधी का मार्केट वैल्यू बढ़ता है और वह माफिया या फिर गॉडफादर बन जाता है। जोकि समाज के लिए खतरा बन सकता है।
अतीक अहमद की जेल यात्रा को जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने Live दिखाया था, उससे निकट भविष्य में शायद एनबीए को फिर कोई नई गाइडलाइन बनानी पड़े ताकि लाइव कवरेज के नाम पर वह उटपटांग कुछ न दिखा सके। कम से कम एनबीए को अपराधियों, माफियाओं की रिपोर्टिंग के मामलों पर एक बार विचार जरूर करना चाहिए जैसा मुंबई के आतंकी हमलों के बाद उसने किया था। 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले या फिर उससे पहले कारगिल युद्ध के दौरान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग सवालों के घेरे में आयी थी। 2008 में एक भीषण आतंकी वारदात को लाइव दिखाने के चक्कर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मानों सारे सिद्धांत भूल गया जिसका फायदा पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के हैंडलर ने उठाया। तब पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर हदबंदी की चर्चा हुई। सरकार ने आतंकी घटनाओं के दौरान लाइव रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी। अब कहीं भी आतंकी वारदात के दौरान सैन्य या पुलिस कार्रवाई हो रही है तो टीवी चैनलों को वहां पर प्रवेश वर्जित है।

*ईं0 मंजुल तिवारी*
*सम्पर्क सूत्र*- 7007829370

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Author: rashtradarpan