संपादकीय
।।प्रणाम।।
हमें गर्व है यह पावन भूमि हमारे लिये भोग्या नहीं बल्कि माँ है, इसका भी हमें गर्व है कि हम जड़-चेतन में परमात्मा का दर्शन करते हैं , कर्मफल पर विश्वास करने के कारण,हज़ारों वर्षों के संकट के काल में भी हमने अपनी नैतिकता , आस्था और मानबिन्दुओं को सुरक्षित रखा । हमने शक़, हूण, कुषाण जैसे आक्रमणकारियों को आत्मसात कर लिया हम संपूर्ण वसुधा को कुटुंब मानने वाले हैं , और अनादिकाल से विश्व को श्रेष्ठ बनाने का हमारा संकल्प है। अग्नि कि पूजा करने वाला अपनी मूलभूमि से विस्थापित पारसी समुदाय सम्मानपूर्वक आज भी अपनी मान्यता और आस्था के साथ हमारी भारतमाता के आँचल में आनंदपूर्वक है। २००० वर्ष तक दुनिया में सर्वत्र अपमानित होने वाले यहूदियों को हमने आदरपूर्वक अपनी धरती पर शरण दी इसका भी हमें गर्व है । हमारी दुनिया में दूसरे पंथों की तरह केवल अपने देवता और उपासना पद्धति को मानने वालों के लिए ही स्थान नहीं है, बल्कि हमारी दुनिया में तो पर्वत देवता , नदी देवी और कंकर कंकर शंकर है। इतिहास साक्षी है कि शक्तिशाली रहने पर हमने मज़हब के आधार पर कत्लेआम नहीं किये ,किसी का उपासना केंद्र नहीं तोड़ा और न ही किसी का धर्मग्रन्थ जलाया। विडम्बना ,आज हमें हमारी ही धरती पर सर्वधर्म समभाव का उपदेश दिया जा रहा है,हमसे अपना अतीत भूल जाने की अपील की जा रही है, तथाकथित बुद्धिजीवियों की एक जमात के द्वारा कहा जा रहा है कि,आप तो सहिष्णु हो ,हिन्दू धर्मं नहीं यह तो जीवनपद्धति है ,आपके विचार उदात्त हैं इसलिए पुरानी बातें भूल जाइये, नयी रौशनी में जीने कि आदत डालिये,नये भारत के निर्माण में हाथ बँटाइये। क्या-क्या भूल जाँय हम ????? पृथ्वीराज की आँखें,जौहर कि धधकती ज्वाला ,
सांगा के ८० घाव, प्रताप की घास की रोटी ,
बंदा बैरागी ,गुरु तेगबहादुर , गुरुपुत्रों का बलिदान ,
श्री रामजन्मभूमि ,श्री कृष्णजन्मभूमि ,काशी विश्वनाथ , सोमनाथ,हज़ारों मन्दिरों का ध्वंस?? यह जमात
हमारे वन्देमातरम के आग्रह करने पर , गोहत्या के विरोध करने पर, हिन्दू स्वाभिमान की बात करने पर, धर्मांतरण और घुसपैठियों का विरोध करने पर
आतंकवाद और मुस्लिम तुष्टिकरण का प्रतिकार करने पर हमें साम्प्रदायिक कहती है। आज हमें दृढ़ता से बताना होगा! विदेशियों की जूठी पत्तल चाटकर कलम घिसने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों को कि हम कट्टर नहीं आग्रही हिन्दू हैं , हम कुछ भूलने वाले नहीं हैं ,न अपना गौरवशाली अतीत , न अपने शौर्यवान ,विद्वान् और बलिदानी पूर्वज न अपने पूर्वजों कि छोटी मोटी गलतियां और न ही परकीयों का षडयंत्र ,धोखा ,अत्याचार अनाचार और लम्पटता। हमे अपने उदात्त विचार और अपना जीवन दर्शन दोनों स्मरण हैं तथा इनको सुरक्षित रखने के लिये अपने पूर्वजों का दीर्घकाल तक किया गया सघर्ष और बलिदान भी। हमें पता है धर्मं कि स्थापना अधर्म के नाश के बाद ही सम्भव है और अधर्म का नाश यदि संवाद से नहीं हो तो अधर्मियों का विनाश ही एकमेव मार्ग है। हमें इसका भी भान है कि हम इस धरती पर हिन्दू के नाते सशक्त-संगठित रहेंगे तभी हमारा तत्वदर्शन और हमारे उदात्त विचार सुरक्षित रहेंगे। अपना लक्ष्य हमने तय किया है इसलिए मार्ग भी हमें ही पता है,हमें नहीं आवश्यकता है विदेशी ताक़तों के हस्तक,धरती से कटे हुए भावनाशून्य ,अंग्रेजी में सोचने वाले ग़ुलाम मानसिकता के तथाकथित सेक्युलर विचारकों और लेखकों के मुफ्त सलाह की। "लक्ष्य तक पहुचे बिना पथ में पथिक विश्राम कैसा " ।।अम्बरीष।।