उत्तर प्रदेश
विधान-सभा चुनाव के पहले चरण में होने वाले मतदान के लिए भाजपा ने 30 स्टार प्रचारक की लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में प्रधानमंत्री मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, हेमा-मालिनी, स्मृति ईरानी, मुख्तार अब्बाश नकवी का नाम है। नाम नही है तो मेनिका और वरूण गांधी का। पार्टी में रहकर भी मां- बेटा दोनों बेगाने से हो गये हैं। वरूण के बागी तेवर का खामियाजा उनकी मां मेनिका को भी मिला है।बता दें इससे पहले भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी मां- बेटे को निष्कासित कर दिया गया था। वरूण गांधी ने किसान- आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था, और लखीमपुर खीरी हत्याकांड़ के खुलकर विरोध करने के कारण पार्टी को असहज करने का खामियाजा भाजपा ने उन्हें दिया है।
चलिए आज आपको मेंनिका गांधी की कहानी बताते हैं।—
1973 में मेनका गांधी और संजय गांधी पहली बार कॉकटेल पार्टी में मिले थे। तब वह महज 17 साल की थी। संजय गांधी ने मेनका को बॉम्बे डाइंग के एक विज्ञापन में देखा था और उन्हें उससे प्यार हो गया।
जैसे-जैसे प्यार बढ़ता गया, मेनका की माँ को इसके बारे में पता चला और उन्होंने उसे तुरंत उन्हें अपनी दादी के पास भोपाल भेज दिया। जैसे ही वह वापस आई, सगाई तय हो गई और शादी के तुरंत बाद, मेनका भारत की तत्कालीन सबसे बड़े और शक्तिशाली घर की “छोटी बहू” बन गई।
उनका एक बच्चा हुआ और उन्होंने उसका नाम वरुण रखा। वरुण को अब फिरोज वरुण गांधी के नाम से जानते हैं और वह एक भाजपा नेता हैं। वरुण सिर्फ 3 महीने के थे जब मेनका और वरुण की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई, संजय गांधी की मृत्यु हो गई। सोनिया और मेनका का रिश्ता देवरानी-जेठानी के रूप में शुरुआत में गर्म और सहानुभूतिपूर्ण था। सोनिया, बड़ी होने के नाते मेनका की तुलना में घरेलू मामलों और रसोई पर अधिक नियंत्रण रखती थीं।
दूसरी ओर मेनका को रसोई में अपना समय बिताने का शौक नहीं था; बल्कि, वह राजनीतिक भाषणों में अपनी सास की मदद करती थीं। घर में हुए झगड़े के परिणामस्वरुप इंदिरा को मेनका से ज्यादा सोनिया पर भरोसा होने लगा। 1977 में इंदिरा की हार के बाद जब परिवार ने प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया, सोनिया-इंदिरा का संबंध और मजबूत हो गया।सोनिया और इंदिरा लंदन में थीं जब मेनका ने संजय विचार मंच से तथाकथित भड़काऊ भाषण दिया। जैसे ही इंदिरा वापस आईं, दोनों में बहुत झगड़ा हुआ और 1 बजे, मेनका ने अपने 3 साल के बच्चे के साथ घर छोड़ दिया और एक आशाजनक राजनीतिक करियर की ओर रुख किया। जानकारों की मानें बीजेपी को शुरूआत में सोनिया और राहुल गांधी के काट की जरूरत थी, और बीजेपी ने कई वादें करके मेंनिका और वरूण गांधी को अपने पाले में किया और अटल जी के समय में खाश खाश तवज्जो भी दी गयी। परन्तु मोदी सरकार में दिन- प्रतिदिन मेंनिका और वरूण गांधी की बार-2 उपेक्षा की जाती रही है। वरूण गांधी ने हमेंशा देशहित, नौजवानों की बेरोजगारी, किसान- हित के लिए अपनी ही सरकार से सवाल सोसल मीड़िया के माध्यम से दागें हैं। जिससे पार्टी असहज दिखी है।
सम्पादक- ईं0 मंजुल तिवारी ( राष्ट्र दर्पण न्यूज)