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पान का पत्ता, पत्ते की सत्ता

पान भोलेनाथ का प्रसाद एवं बनारस का एक
पहचान……..
हृदय के आकृति का पत्ता जिसे विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नाम से जाना जाता है ,तांबूल (संस्कृत )पक्कू( तेलुगू) वेटि लाई (तमिल और मलयालम )नागवेल( मराठी) नागुर वेल( गुजराती )आदि, पादप जगत के पाईपरेसी कुल के पाइपर वंश के पौधे का लता का पत्ता है। जिसका वैज्ञानिक नाम पाईपर बीटल है ।यह उष्ण एवं उषपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगने वाला बारहमासी, सदाबहार फसल है ,जो फल के लिए नहीं केवल पत्ते के लिए उगाया जाता है ।यह भारत के अलावा लंका, थाईलैंड, बांग्लादेश में भी प्रमुखता से उत्पादित होता है ।पान के खेती के लिए उष्णता उतनी ही आवश्यक है जितना रसऔर नमी। इसी कारण गर्म देशों में नमी वाली भूमि में ज्यादातर इसकी उपज होती है। परंतु इसकी खेती श्रम साध्य है। इसके खेती के स्थान को वरै, बरेजा, वराज, भीटा आदि कहते हैं और पत्ते काटने वाले को वर्रे,वरज,वरई कहते हैं ।जबकि वर्तमान समाज में अधिकतर इसके व्यवसाय करने वाले चौरसिया नाम से पुकारे जाने लगे हैं। भारत में असम ,आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात ,उड़ीसा ,कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में मुख्य खेती होती है। जबकि इसके मित्र सुपारी के उत्पादन में कर्नाटक, केरल और असम 3 राज्यों का 85प्रतिशतसे अधिक योगदान है। वर्ष 21-22 में 6517.26 मीट्रिक टन अर्थात 45.97 करोड रुपए का निर्यात भारत से हुआ था जब के इसके मित्र सुपारी का 7539 .31 मीट्क टन अर्थात169. 25 करोड़ों का निर्यात हुआ था।
पान की उत्पत्ति के विषय में यह धारणा है कि भगवान शिव और मां पार्वती ने मिलकर इसके पहले पौधे का बीज हिमालय पर डाला था। कुछ लोग समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि के कलश में जीवन देने वाले औषधियों के साथ ही इसका उद्गम मानते हैं। पान को वैदिक काल में नागबली कहा जाता था क्योंकि कथा के अनुसार इसकी उत्पत्ति बासुकीनाथ के अंगुली से हुई। आरंभ में पान औषधि के रूप में प्रयोग होता था जो बाद में शौकीनों का खासकर संगीत प्रेमियों का प्रिय बन गया। मुगलों को पान में चूना, लॉन्ग, इलायची वगैरह डाल कर इसे माउथ फ्रेशनर बनाने का श्रेय दिया जाता है।
इस का उद्भव स्थल मलाया द्वीप है। वेद में भी पान के सेवन के पवित्रता का वर्णन है। पान सेहत के लिए लाभकारी है। इसमें वाष्पशील तेलों के अतिरिक्त एमिनो अम्ल, कार्बोहाइड्रेट और कुछ विटामिन भी होते हैं। ग्रामीण अंचलों में पान के पत्तों का प्रयोग फोड़े फुंसी के उपचार में भी किया जाता है ।हितोपदेश में इसके औषधीय गुण बलगम हटाना, मुख शुद्धि ,अपच में सहायक, सूखी खांसी, श्वास संबंधी बीमारी के इलाज में उपयोगी बताया गया है ।इसमें विटामिन ए की पर्याप्त मात्रा होती है। प्रातः कालीन नाश्ते के उपरांत काली मिर्च के साथ पान का सेवन से भूख ठीक से लगती है ।नमक अजवाइन के साथ मुख में रखने से नींद ठीक से आती है।
यद्यपि भारत में देश और गंध के आधार पर 100 से अधिक प्रकार के पान के पत्ते प्रचलित हैं परंतु मुख्य रूप से बंगला, मगही,सांची , देसावरी, कपूरी, मीठीपत्ती जगन्नाथी प्रचलित है।
भारत के इतिहास एवं परंपरा से गहरा जुड़ाव रखने वालायह ह्रदय के आकार का पत्ता अपने औषधि गुण से सफर शुरू करते हुए संगीत के शौकीनों को अनुयाई बनाते हुए कुछ नशाखोरों को समेटते हुए अन्य जगहों जैसे बंगाल में सिगरेट से ,बिहार में खैनी से, उत्तर प्रदेश में गुटका से, उड़ीसा में सिगरेट से ,तमिलनाडु में सिगरेट से ,गुजरात में हुक्का से , पंजाब में दारु से रण करते हुए अपने मूल घर बाबा शिव की नगरी में आज भी अपना झंडा बुलंद किए हुए है।
बनारस की शान — मगही पान
खाई कऽ मगहिया पान ,
ए राजा हमरो जान लेबऽ का..
मिथिला में गाया जाता है कि
खाय कऽ मगहिया पान
यौ पाहून हमार जान किया लैछी।
जान किया लैछि परान किया लैछी
खाई कऽ मगहिया पान
यौ पाहुनी हमर जान किया लैछी।
गीत आप लोगों के दिल को छू गया होगा और अगले गीत जिसमें बनारस के पान की महिमा का वर्णन है।1978की डान फिल्म मैं किशोर कुमार की आवाज में…..
खाई के पान बनारस वाला
खुल जाए बंद अकल का ताला।
फिर तो ऐसा करे धमाल
सीधी कर दे सबकी चाल
अरे छोरा गंगा किनारे वाला
अर्थात बनारसी पान से बुद्धि खुल जाती है।
1966 की फिल्म तीसरी कसम में भी आशा भोसले ने पान की सुंदरता का बयान किया है
सांवली सुरतिया पर होठ लाल लाल
हाय हाय मलमल का कुर्ता।
मलमल के कुर्ते पर होठ लाल लाल
पान खाए सैंया हमारो
हमने मांगा सुरमेदानी
ले आया जालिम बनारस का जर्दा
यह अलग बात है कि जिस मगही पान का बनारस दीवाना है और जो मगही पान बनारस की शान है उसका उत्पादन बिहार राज्य में होता है ।यह जरूर है कि बनारस में काफी मेहनत कर उसे हरा से सफेद बनाया जाता है। और वह सफेद पान कहलाता है। बिहार को लीची के साथ-साथ मगही पान का भी जी आई टैग प्राप्त है

गोपाल जी ओझा

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Author: rashtradarpan